शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

कथा समवेत द्वारा आयोजित कथा साहित्य प्रतियोगिता में "मोरी साड़ी अनाड़ी न माने राजा" कहानी को मिला प्रथम स्थान

सुलतानपुर 08 नवम्बर।
     माँ धनपती देवी स्मृति कथा साहित्य सम्मान 2017 के लिए "कथा समवेत" द्वारा आयोजित अखिल भारतीय हिंदी कहानी प्रतियोगिता का परिणाम घोषित करते हुए सम्पादक डॉ शोभनाथ शुक्ल ने समय से पूर्व परिणाम देने के लिए निर्णायक मण्डल के सम्मानित सदस्यों का आभार व्यक्त किया है।बकौल उनके इस वर्ष सौ से अधिक आई कहानियों का मूल्यांकन कार्य निश्चित रूप से निर्णायकों के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है।अन्तिम चरण (द्वितीय चरण) में निर्णायक मण्डल में शामिल कथाकार मदन मोहन, गोरखपुर,उ.प्र., जमशेदपुर के कथाकार एवं उपन्यासकार जयनन्दन तथा झाँसी के प्रो. जगदीश खरे के मूल्यांकनोपरांत  कहानी लेखिका सोनी पाण्डेय आजमगढ़ उ.प्र. की कहानी "मोरी साड़ी अनाड़ी न माने राजा" को प्रथम स्थान मिला है।होशंगाबाद के कहानीकार गोपाल नारायण आप्टे की कहानी "बुद्ध रिसॉर्ट" को द्वितीय स्थान तथा तृतीय स्थान कहानी "मकान", अरुण अर्णव खरे,भोपाल को मिला है।
     इसके अतिरिक्त तीन कहानियों को विशेष प्रोत्साहन पुरस्कार के लिए चुना गया है। ये कहानियाँ ब्रह्मदत्त शर्मा,हरियाणा की "बुढ़ापे का एक दिन", भरचन्द्र शर्मा बांसवाड़ा की "आखिर कौन" तथा रश्मि शील लखनऊ की "समाधान" हैं।आयोजक डॉ शुक्ल ने प्रतियोगिता में प्रतिभाग करने के लिए समस्त रचनाकारों का अभिवादन करते हुए कहा कि लगभग सभी कहानियाँ अपने कलेवर में अच्छी रहीं और इस प्रतियोगिता को गौरवान्वित करती हैं।
    राहुल सांकृत्यायन की धरती आजमगढ़ से जुड़ी हुई कथा लेखिका सोनी पाण्डेय अपनी रचनात्मक कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए हिंदी कथा साहित्य में अपना एक खास स्थान बना चुकी हैं।कथादेश, कथाक्रम,हस्ताक्षर,पाखी,साक्षात्कार,कृतिओर, नया ज्ञानोदय,आम आदमी, निकट,लमही, युद्धरत आदि प्रसिद्ध एवं श्रेष्ठ पत्रिकाओं में निरन्तर अपनी कहानियों के प्रकाशन से सांगोपांग उपस्थित हैं। "मोरी साड़ी अनाड़ी न माने राजा" कहानी समय,समाज और जीवन के अंतर्विरोधों की गहरी समझ और सरोकार के साथ यथार्थ की अभिव्यक्ति है।
     इसी तरह "बुद्ध रिसॉर्ट" संश्लिष्ट शिल्प में रची हुई ऐसी कहानी है जो दुर्लभ शारीरिक भौतिक सुख की होड़ और दौड़ को एक नए ढंग से व्याख्यायित करती है।निर्वस्त्र अवस्था में स्त्री-पुरुष के सम्बन्धों में जिस तरह संयम और व्यवहार में संतुलन स्थापित करती है कहानी,वह प्रशंसनीय है।
     "मकान" कहानी अपने पूरे कलेवर में पिता को पूरे तौर पर पुत्र द्वारा नकारे जाने और बिना उनकी मर्जी के मकान बेच देने के लिए प्रापर्टी डीलर को बुला लेना..... निःसन्देह पिता के लिए इससे बड़ी उपेक्षा क्या हो सकती है।संपत्ति के प्रति अगाध प्रेम बुजुर्गों के प्रति अपमान और उपेक्षा आज समय और विकसित समाज की सबसे बड़ी सच्चाई है। अन्य कहानियां भी अपनी भाषा,कहन और प्रस्तुति में मानव मन को बहुत गहराई से छूती हैं।ये कहानियाँ सिर्फ अनुभवजन्य स्थितियों का ही विश्लेषण नहीं करतीं बल्कि वस्तुगत सन्दर्भों की व्याख्या में विश्वसनीयता भी हासिल करती हैं।
       ध्यातव्य है कि उक्त "माँ धनपती देवी स्मृति कथा साहित्य सम्मान" को 2011 में पत्नी संगीता शुक्ला के विशेष आग्रह पर डॉ. शोभनाथ शुक्ल ने अपनी माँ की पुण्य स्मृति में आरम्भ किया था।यह कथा प्रतियोगिता मूल्यांकन में अपनी पारदर्शिता और ईमानदारी के चलते निरन्तर विस्तार पा रही है और सम्पूर्ण भारत के प्रान्तों/जनपदों के कहानीकारों की पसंद हो गई है।
      प्रत्येक वर्ष 20 दिसम्बर को सम्मान समारोह और राष्ट्रीय कथा संगोष्ठी में भारी संख्या में पुरस्कृत रचनाकारों के अतिरिक्त निर्णायकों, लेखकों,आलोचकों की भागीदारी इसकी विशिष्टता है। 2011 से अब तक इस सम्मान से सम्मानित होनेवाले कहानीकारों में नदीम अहमद नदीम बीकानेर, शुभा श्रीवास्तव वाराणसी, प्रदीप कुमार शर्मा हिमाचल प्रदेश,वेद प्रकाश अमिताभ अलीगढ़, वासुदेव राँची, किशोर श्रीवास्तव दिल्ली, वीरेंद्र कुमार त्रिपाठी फैज़ाबाद, रूबी मोहन्ती दिल्ली, कमल कपूर हरियाणा, सेराज खान बातिश कोलकाता, विजय कुमार सिकंदराबाद, निरुपम मध्य प्रदेश, सैली बलजीत पठानकोट, अमिता दुबे लखनऊ, विजय चितौरी इलाहाबाद, अखिलेश पालरिया अजमेर, अश्विनी कुमार मानव पठानकोट, रेखा पाण्डेय जयपुर, अनूपमणि त्रिपाठी लखनऊ, प्रदीप उपाध्याय गोरखपुर तथा देवेंद्र कुमार मिश्र छिंदवाड़ा प्रमुख हैं।
        वर्ष 2011 से 2015 तक पुरस्कृत 18 कहानियों का संग्रह "पाठक की लाठी", अंजुमन प्रकाशन इलाहाबाद से प्रकाशित भी हुआ है जो इस आयोजन का मुख्य हिस्सा भी है।
     इस वर्ष 20 दिसम्बर को जिला पंचायत सभागार सुलतानपुर में आयोजित सम्मान समारोह  और कथा संगोष्ठी में चयनित कहानीकारों को अंगवस्त्र, प्रमाणपत्र, स्मृतिचिह्न और नकद राशि से सम्मानित किया जाना है।दो सत्रों में बंटे इस आयोजन की आवाज कथा जगत की निष्क्रियता और सन्नाटे को निश्चित रूप से तोड़ती है। इस बार की कथा संगोष्ठी का विषय "समय, समाज और साहित्य पर सोशल मीडिया का हस्तक्षेप" रखा गया है। उम्मीद है कि इस ज्वलंत विषय को लेकर सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों पर विस्तृत चर्चा के जरिये कुछ प्रभावकारी निष्कर्ष अवश्य ही निकलेगा।
    डॉ शुक्ल ने इस प्रतियोगिता की आवाज दूर-दूर तक पहुंचाने तथा उसे व्यवस्थित कर अंतिम निर्णय तक ले जाने के लिए कहानीकार चित्रेश, श्यामनारायण श्रीवास्तव, बन्धु कुशावर्ती और अवनीश त्रिपाठी का विशेष आभार व्यक्त किया है।