शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

लखनऊ में कवितालोक सृजन संस्थान का 'गीतिका-गंगोत्री' महोत्सव एवं सम्मान समारोह

गीतिका गंगोत्री

      कवितालोक सृजन संस्थान के सौजन्य से हिन्दी गीतिका को समर्पित ‘गीतिका गंगोत्री’ और सम्मान समारोह ‘गागर में सागर’ राष्ट्रीय पुस्तक मेला मोतीमहल वाटिका हजरतगंज लखनऊ मे वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अनिल मिश्र की अध्यक्षता और गीतिकाकार सुनील त्रिपाठी के संयोजन में सम्पन्न हुआ। समारोह में साहित्यगंधा के संपादक यशभारती सर्वेश अस्थाना मुख्य अतिथि और उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की संपादक डॉ. अमिता दुबे विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं। समारोह के प्रथम चरण में संरक्षक ओम नीरव ने उत्तरीय और सम्मान पत्र भेंटकर तीस गीतिकाकारों को गीतिका गंगोत्रीतीन काव्य साधकों को ‘काव्य गंगोत्री’, साहित्यसेवी प्रकाशक सुभाष चंद्रा को ‘प्रकाशन गंगोत्री’ और राष्ट्रीय पुस्तक मेला के संयोजक देवराज अरोड़ा को ‘ग्रंथ गंगोत्री’ सम्मान से विभूषित किया। सम्मान समारोह का संचालन सुनील त्रिपाठी ने किया। दूसरे चरण ‘गीतिका गंगोत्री’ में गीतिकाकारों ने हिन्दी गीतिकाओं की सरस धारा प्रवाहित कर श्रोताओं को रस-विभोर कर दिया। गीतिका गंगोत्री की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि  इसका संचालन करते हुए गीतिका-विधा के प्रवर्तक ओम नीरव ने काव्य-पाठ के बीच-बीच पढ़ी गयी प्रत्येक गीतिका के आधारछंद, मापनी, समांत, पदांत आदि की रोचक व्याख्या कर श्रोताओं को आश्चर्य चकित कर दिया। मंजुल मंज़र लखनवी की वाणीवंदना से प्रारम्भ हुई गीतिका गंगोत्री में काव्य पाठ करते हुए उमाकांत पाण्डेय ने गीतिका का परिचय कराते हुए यह युग्म पढ़कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया- 
यह छंद जिसपर मैं पढ़ रहा हूँ प्रसिद्ध वाचिक अनंगशेखर, 
लगालगागा की मापनी पर यही तो नीरव की गीतिका है। 
मनकापुर से पधारे धीरज श्रीवास्तव ने जीवन के कटु यथार्थ को अपनी गीतिका में कुछ इसप्रकार ढाला- 
और भी पाना बहुत कुछ ज़िंदगी तुमसे हमें, 
कब कटा जीवन किसी का चुंबनी उपहार पर। 
वरिष्ठ कवि मधुकर अष्ठाना की गीतिका के इस युग्म पर श्रोता बरबस वाह-वाह कर उठे- 
अर्थ की खोज में व्यर्थ से शब्द हैं, 
कल्पना पांखुरी-सी झरी रह गयी। 
छंदाचार्य रामदेव लाल विभोर ने अपनी गीतिका में युग को दर्पण दिखाते हुए कहा-   
कलयुग है रंग लाया कहते विभोर सच-सच, 
अब कृष्ण का न द्वापर, अब राम का न त्रेता। 
कानपुर से आयीं डॉ. मंजु श्रीवास्तव ने दासता की वेदना को अपने युग्म में ढालते हुए कहा- 
नापते पंछी रहे जो नित्य ही धरती-गगन 
मुस्कराकर बंद पिंजड़े में भला कैसे रहें। 
गोंडा से पधारे उमाशंकर शुक्ल की गीतिका में सामाजिक विकृति का प्रतिबिंब देखने को मिला- 
दुर्व्यसनों में लिप्त और जो है व्यभिचारी, 
नैतिकता का पाठ आजकल वहीं पढ़ाता। 
बिजनौर से पधारे गीतिकाकार मनोज मानव ने मनहर घनाक्षरी पर आधारित गीतिका सुनाकर श्रोताओं को तालियाँ बजाने पर विवश कर दिया- 
बढ़ रहे अपराध, सैकड़ों, न एक आध, 
खतरे में घिरी हुई आन-बान शान है। 
घर-घर की कहानी, नशे में लूटी जवानी, 
झूम रहे युवकों को लठियाना चाहिए। 
संयोजक सुनील त्रिपाठी ने लेखनी के धर्म को कुछ इसप्रकार उजागर किया- 
सत्य लिखने का अगर साहस न हो तो, 
व्यर्थ है इस लेखनी को फिर उठाना। 
हरीश चन्द्र लोहुमी के इस युग्म पर बहुत वाहवाही मिली- 
पथिक काव्य के भूल मत जाइयेगा, 
सृजन से सजी वीथिका का निमंत्रण। 
राहुल द्विवेदी स्मित ने गीतिका विधा पर गीतिका सुनाते हुए कहा- 
छंद की शुद्धता सौम्यता के लिए, 
अनवरत है समर्पित विधा गीतिका। 
गोला गोकर्णनाथ से पधारे राम कुमार गुप्त ने कहा- 
ज़िंदगी घन के लिए केवल घुटन है। 
बूंद का हरबार ही जीवन पतन है। 
वरिष्ठ गीतिकाकार श्याम फतनपुरी ने बेटियों को समर्पित युग्म पढ़कर तालियाँ बटोरी- 
बेटियों को है बचाना अब हमें बढ़कर, 
स्वप्न उनकी आँख नें भी खूब सजते हैं। 
ओम नीरव ने सुनाया - 
सत्य ने सिर उठाया तनिक जो कहीं, 
झूठ की संगठित हो गईं टोलियाँ। 
अध्यक्षीय काव्यपाठ करते हुए डॉ अनिल मिश्र ने गीतिका का एक नए स्वरूप में प्रस्तुत करते हुए श्रोताओं को रस-विभोर कर दिया - 
आओ यशुदा दुलारे हाँ हमारे अंगना। 
आओ यमुना किनारे हाँ कामारे अंगना। 
मुख्य अतिथि सर्वेश अस्थाना ने गीतिका गंगोत्री को एक अभूतपूर्व परिकल्पना बताते हुए हिन्दी-सेवा के लिए कवितालोक की सराहना की। विशिष्ट अतिथि डॉ. अमिता दुबे ने इस आयोजन को काव्यशिल्पियों के लिए उपयोगी बताते हुए कवितालोक का एक कार्यशाला के रूप में स्वागत किया। गीतिका गंगोत्री में गीतिका-गुंजन करने वाले अन्य कवियों में मुख्य थे- मंजुल मंजल लखनवी, सौरभ टंडन शशि, रेनू द्विवेदी, डॉ अजय प्रसून, कुमार तरल, आभा मिश्रा, विपिन मलिहाबादी, अशोक अवस्थी, चेतराम अज्ञानी, केवल प्रसाद सत्यम, नागेंद्र सोनी, गौरीशंकर वैश्य विनम्र, सुंदर लाल सुंदर, डॉ उमेश श्रीवास्तव, डॉ प्रेमलता त्रिपाठी,डॉ हरि फैजाबादी

 रपट- सुनील त्रिपाठी, लखनऊ