मंगलवार, 31 मई 2016

समीर परिमल जी के चंद उम्दा शेर

SAMIR PARIMAL
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1. तेरी बुनियाद में शामिल कई मासूम चीख़ें हैं
    इमारत बन रही होगी तो क्या मंज़र रहा होगा

2. इक फ़क़त तेरे सिवा दोनों जहाँ को जीतकर
    रूह से लिपटी मेरी पाकीज़गी रोती रही

3. ज़ुबाँ चुप है मगर आँखों में तैरे है वही मंज़र
    मेरे दर पर तड़पती, चीख़ती, दम तोड़ती दुनिया

4. जब सियासी गली से गुज़रा है
    सचबयानी ने ओढ़ ली चादर

5. काश महसूस कभी आप भी करते साहिब
    दर्द देता है बहुत गैरज़रूरी होना

6. आख़िरी कश है ये ज़िंदगी का सनम
    आज तस्वीर तेरी धुआँ बन गई

7. याद की बदली जो छाई, जल उठे दिल में दिये
    इन हवाओं पर तेरी सूरत बनाई, देख ली

8. करीबी वो बहुत होने लगा है
    गिराएगा मुझे अपनी नज़र से

9. मुझे अश्क़ों को पीने का हुनर आता नहीं यारों
    छुपा लूँ किस तरह आँखों से ये बहते हुए चेहरे

10. है मयस्सर चंद लोगों को ख़ुदा की नेमतें
       मुफ़लिसों के वास्ते ताज़िन्दगी रमज़ान है

© समीर परिमल पटना